हार....है क्या जिससे डरता हूँ मैं?
- मुकुल प्रियदर्शी
वह तो बस एक ठहराव है, जिस पे संवरता हूँ मैं!
हर हार से संभलता हूँ मैं!!
वो जिन्दगी क्या जो बस दौड़ परे?
थोड़ा चलें, थोड़ा रुके,
और मोड़ प़े जो हम फ़िसल पड़ें,
क्या हुआ उससे, उठ कर फिर भागे!
चलते रहे, बस चल दिये.....
हर हार से संभलता हूँ मैं!!
हार संघर्ष का अंत नहीं, बस एक भाग है!
हार से होते नहीं हतास कभी, करते उसको पार हैं!
हार तो यलगार है,
आगे बढ़ते रहने की पुकार है,
हर हार से बढ़ता हूँ मैं!
हर हार से संभलता हूँ मैं!!
Photo Source: Google Image, Search Word: Defeat
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