Monday, August 20, 2012

मौत की बरात

अँधेरे का हुआ बसेरा, 
छिप गया कही सवेरा!
चिता भस्म की गंध से,
हुई अपावन वसुंधरा!
बेमोल हुआ मानव,
नंगी हो गई मानवता!
गंगा, ब्रह्मपुत्र के देश में,
बहने लगी लहू की धारा!
यह कैसी लगी आग, 
किसने लाई मौत की बरात!!!

दिल में भड़े थे अंगारे,
हाथों में थामी थी तलवार,
आँखों पे धर्म की पट्टी थी,
जुबा पे इंसानियत की ललकार!
लुट गया था जहाँ,
बिखरी पड़ी थीं खुशियाँ,
कदम कदम पे धब्बे थे,
बच्चे तक ले रहे थे सिसकियाँ!
टुटा था भारत सपनो का,
गम था बस अपनों का,
बाजार भी कम पड़ गया...
मांग था इतना कफनों का!
यह कैसी लगी आग,
किसने लाई मौत की बरात!!!

(Photo Source: Google Image, Search Word: Riots in India) 
(Hindi Typing: Google Transliterate Tool)