अँधेरा था, जैसा था, क्यूँ दुर कर दिया है?
अब दिवार पे लगी तस्वीरें दिखती हैं,
धुधली ही सही, टेडी सी अड़ी ,
मुझे शर्मिन्दा करती हैं!!
उन्हीं तश्वीरों में एक बोस की तश्वीर है,
दीया की मद्धम रौशनी में मुझे देख, पूछते हैं, "यह कहाँ हैं?"
और जब मैं कहता हूँ," यह देश भारत है"
तो सहसा रोक मुझसे कहते हैं...
फिर इतना अँधेरा क्यूँ है यहाँ? कहा हैं वो वीर बांकुरें?,
कहा हैं कलकल नदियाँ,
किधर लहलहाते खेत हैं,
कहाँ बेख़ौफ़ दौड़ती हैं कुडियां?
यही तो है वो देश यहाँ, जहाँ हुए थे आप कभी,
मिला मुझे जो हाथों, थामी हैं मैंने वो कड़ियाँ!
एक हवा के झोके से हिलती है तश्वीर,
संभलते बोस के आँखों में दिख जाते हैं नीर!!
था वो उन्माद ऐसा, जलते हवन में दी थी आहुतियाँ!
दीवाने देश के हस्ते हस्ते चढ़े फाशियाँ!
कहा गए वो मतवाले, क्यूँ खाली है बशुन्धरा?...वो फिर पूछते हैं!
यह किसने किया रौशन यहाँ?..नज़रे चुरा मैं हूँ पुकारता!
भैया आज दिवाली है...वो पगली कहती है!
आज ही रावण को मार श्री राम लंका से आये थे अयोध्या!
पागल....अब कहाँ राम रहे, कहाँ है अयोध्या?
सब रावण, हर भूभाग बना है लंका,
इस युग सीता को आजीवन करना होगा इंतजार यहाँ,
यह किसने मेरे कमरे को आज रौशन कर दिया है?
अधेरा था, जैसा था, क्यूँ दुर कर दिया है?
-मुकुल प्रियदर्शी
2 comments:
Phir tumne aaj mere jamir ko jaga diya hai......only this came off me after reading your poem.
Kahin par dharam bante hain, kahin par iman bante hain,
Kahin par hindu,sikh,isaee to kahin muslmaan bante hain,
Mukul ki mehfil main akar dekh "saki" yhan insan hi insan
bante hain.
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