एक मेरा दिल है!
किधर बैठा है मेरे अन्दर, मुझे मालुम नहीं,
उसे देखा नहीं कभी, पर उसके होने का अहसास है!
उसे किसी से मुहब्बत नहीं, ना शायद किसी चीज की चाह है!
अँधेरे में भटकना उसका शौक,
और अथाह को अपना बनाने की चाह है शायद!
वह कभी मदद, तो कभी आंशु बन बहना चाहता है,
तो कभी दूसरों को गले लगा उन्हें सुनना चाहता है!
कभी मेरे क़दमों को सहसा रोक देता है,
तो कभी मुझे बहता छोर देता है !
जब कभी पूछता हूँ, क्युं करता है तु ऐसा...
तो डाल मुझे मजधार में,
खुद कुछ दूर खरा होता है, मुझे आगे बुलाता है,
बढने का हौसला दिलाता है!
यह मेरा दिल है.....
मेरे काबू में नहीं,
मुझे से अनगिनत सवाल करता हैं
पर यह वही तो है...
जो मेरे होने का एहसास दिलाता है!!!
-मुकुल प्रियदर्शी
3 comments:
whenever i have read any poetry of urs, i just cant control from being drawn to the flow of the situation described in your thought or poetry. Nice Work Mukul
too true bro.......
nice 1,,after such a long time.
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