जिंदगी की अनजान राहों पे....अच्छे बुरे वक़्त से गुजरता हुआ....
खुलते पन्नो में अपनी कहानी पढता हुआ...
नये साथी बनाते, तो कुछ साथिओं को पीछे छोरता हुआ…..
कभी खुद को समेटते, तो कभी किसी को संभालता हुआ…
ख़रा युही देखता हूँ सालों को बीतता हुआ……
इन सालों में से कुछ लम्हें चुरा लेता हूँ…
लम्हों को पीरो साथ साथ यादें बनाता जाता हूँ!!!
सरक के पार रहने वाली बुडिया को इस दुनिया से जाते देखता हुआ,
बदलते मौसम और कम होती इंसानियत को निहारता हुआ….
मासूम बचपन को धीरे धीरे खोता हुआ……
हँसता हुआ…..रोता हुआ…
इन सालों में से कुछ लम्हें चुरा लेता हूँ…
लम्हों को पीरो साथ साथ यादें बनाता जाता हूँ!!!
सालों बाद…जब बैठूँगा अकेले में अपने हाथों की झुरियूं को निहारता हुआ….
तब कभी खोलूँगा अपनी यादों की पोटली….किसी को भूलता तो किसी को तरसता हुआ…….
यादों की सुनहरी तस्वीर पे अपनी छाप खुरेद्ता हुआ…….
चेहरे पे हंसी लायेंगी यह सब बातें……
हंसुंगा….खुश हो लूँगा....आने वाले वक़्त से डरता हुआ....
इसीलिए इन सालों में से कुछ लम्हें चुरा लेता हूँ…
लम्हों को पीरो साथ साथ यादें बनाता जाता हूँ!!!
- Mukul Priyadarshi
**** Mistakes in hindi writing could be attributed to my limited knowledge of google transliterate tool. I am aware of the mistakes but could not correct it. It is not intentional.
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