Friday, May 22, 2009

सपनें उम्मीद बन जाते हैं.....

सपनें उम्मीद बन जाते हैं,
आँशु फरियाद की शक्ल बनाते हैं!
चीखता है दिल,
और लम्हें तेरी याद बन आते हैं!
धङकनें थम सी जाती हैं,
खामोशी लाचारी का शबब बन चिढाती है!
हवाएँ पुछती हैं सवाल,
और आकाश घूरता है मुझे!
बुत बन मैं,
शून्य को निहारता जाता हूँ,
क्युँ की यह गलती सोच सोच पछताता हुँ!!
-मुकुल प्रियदर्शी

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