Thursday, January 17, 2008

Ek Subah Ek Gadhe Saath- A Poem

आज मेरी एक गधे से मुलाक़ात हुई,
आ खरा हुआ सामने, जाने ऐसी क्या बात हुई?
मैंने उसको निहारा, करीब जा के उससे बोला- " भाई गधे!,
क्यों रोका मेरा रास्ता? क्या मेरे से कोई घात हुई?"
गधे ने पहले मुझको घुरा, फिर धीरे से मुझ से बोला-" हे मनुष्य!,
जब काट डाले जंगल, छीन लिए मेरे घर तब तो विकाश की बात हुई|
अब मैं किधर जाऊ? कहाँ से जंगल उगाऊं?"
गधे की बातों मी था दम, मुझे लगा मेरे आकरें ही हैं कम|
कुछ देर यूं ही खरा रहा, खामोश सा बना रहा|
रुक कुछ पल मैं बोला-" गधे!, मनुष्य को क्यों दोष लगाता है?
यह तो भगवान् का वरदान है जो जनसंख्या बढ़ता जाता है"
गधे ने भी कमर कासी, हामी भर मुझे से बोला- "बढ़ते जनसंख्या पे
रोक क्यों नही लगाते हो? क्यों दिनभर टीवी पे गला फार कंडोम कंडोम चिलाते हो?"
गधे ने हुंकार भरी, आंखों मी आँखें डाल मुझ पे धिकार भारी|
मैं भी कैसे जाता हार? दिल दिमाग की दौड़ लगा गधे को नीचे दिखाने की चाल चली|
मैं बोला-तू मुझे क्या सिखाता है, ख़ुद तो गधा कहलाता है| हस्ते हैं सब तुझ पे
और तू बोझ डाले चुप चाप चलता जाता है|"
जान अपनी जीत मैं अपने ऊपर इतराया|
देख मेरी ओर गधा भी मुस्कुराया और बोला- माना हँसते हैं सब मुझ पे,
पर तू क्यों इतराता है, ख़ुद के काम को दूसरो को दे सताता है|
काट डाले जंगल, जानवरों को गुलाम बनायाऔर नस्ट कर दिया पृथ्वी को|
ख़ुद तो मरेगा ही, क्यों हमे भी मारने पे तुला है?"
गधा लड़ने को था उतारू, फिर मैंने बगले झांकी
देख आती इन्फोस्य्स की बस को, गधे के बगल से रास्ता निकाली|
गधा देखता रहा जाते मुझको और फिर बरी सी हुंकार मारी|
उस घटना से आह़त 'मुकुल' ने भी बस मे कविता की कुछ पंगतिया लिख डाली|

2 comments:

Anonymous said...

Nice poem :)
Keep going and continue to harness ur writing skills :)

Rakesh kumar Sharma said...

Good